November 21, 2024

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हरेली कृषि ही नहीं अपितु प्रकृति संरक्षण का पर्व है – पद्मश्री अजय मंडावी

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छत्तीसगढ़/khabar-bhatapara.in:-  छत्तीसगढ़ राज्य आदिम संस्कृति,कला एवं साहित्य संस्थान द्वारा हरेली प्रकृति संरक्षण का पर्व विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पद्मश्री अजय मंडावी ने कहा कि हरेली सिर्फ कृषि पर आधारित पर्व ही नहीं बल्कि प्रकृति संरक्षण का पर्व है जो मानव समुदाय के साथ ही कृषि पशुओं के साथ प्रकृति के परस्पर सहसंबंध को दर्शाता है। किसान अपने खेतों में जल्दी खाने योग्य भाजियों या अन्य फसलों को बोंते हैं जिनको हरेली के दिन से खाना शुरू करते हैं, उन्होंने आगे कहा कि आज हमें जैविक खेती आधारित मिलेट्स फसल लेकर आर्थिक मजबूती प्राप्त करने की आवश्यकता है ताकि ग्रामीण कृषक भी खेती को लाभ का कार्य बना सके।
आदिम संस्कृति के प्रमुख जानकार विष्णुदेव पद्दा ने संगोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हरेली को आमुस और कुसीर पंडुम भी कहा जाता है। इस दिन भाजी वर्ग की सब्जियों को ईष्टदेव में अर्पित करके खाना शुरू करते हैं। साथ ही यह पर्व सामूहिक फसल सुरक्षा का माध्यम है इस दिन सुबह से ही किसान अपने खेतों में भेलवा व दसमूर (शतावर) के डंगाल को गाड़ते हैं, उस डंगाल में पक्षियां आकर बैठती हैं और फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट-पतंगों को खाकर किसान को होने वाले नुकसान से बचाते हैं। साथ ही किसान अपने खेतों में काम आने वाले औजारों की साफ-सफाई करके सेवा – अरजी कर उनके सहयोग हेतु आभार व्यक्त करते हैं।
पादप औषधि बोर्ड छत्तीसगढ़ शासन के पूर्व सदस्य बीरसिंह पद्दा ने जानकारी देते हुए बताया कि यह पर्व सामुदायिक समरसता का प्रतीक है इस दिन अल सुबह राऊत जाति की माता उन बच्चों को जो देर से उठते हैं उनको लहसुन की काड़ी से आंकती हैं, ताकि वे आगे जल्दी उठें और आलस्य को त्यागें। वहीं लोहार जाति के लोग घर-घर जाकर लोहे का कील ठोंकते हैं जिसके बदले उपहार स्वरूप उन्हें चांवल या पैसा दिया जाता है।
समाज प्रमुख अश्वनी कांगे ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि हरेली पर्व सिर्फ एक पर्व ही नहीं अपितु हमारे जीवन का मूल आधार है जो कि हमें प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं के उपभोग व उनके संरक्षण का शिक्षा देता है। बारिश के समय भाजियों के जहरीले प्रभाव को कम होने देकर व परिपक्वता के आधार पर उनका उपभोग करना हमारे वैज्ञानिक सोच की निशानी है। उन्होंने आगे युवाओं से अपील करते हुए कहा कि हमें अपने संस्कृति के प्रत्येक पर्व के मनाने के वैज्ञानिक तथ्यों को जानने की आवश्यकता है तब उनके मनाने का औचित्य होगा।
संगोष्ठी में शिवप्रसाद बघेल, बृजबत्ती मातलामी व धनाजू नरेटी भी विचार व्यक्त किये।
इस संगोष्ठी में पारंपरिक परिधान पर आधारित प्रतियोगिता रखी गयी थी जिसमें प्रीति गावड़े विजेता रही। कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को छत्तीसगढ़ पादप औषधि बोर्ड के पूर्व सदस्य बीरसिंह पद्दा ने गिलोय व अडुसा के पौधे वितरित किये।
कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन संस्थान के सचिव संदीप सलाम व उद्देश्यों पर अध्यक्ष ललित नरेटी ने प्रकाश डाला। संगोष्ठी का संचालन प्रवीण दुग्गा व संस्थान की उपाध्यक्ष नीलिमा श्याम ने आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर हरिश्चंद्र कांगे, बिरेंद्र कोरेटी, दिनेश ठाकुर, राजेंद्र उसेंडी, गौरव तेता, झाडू मंडावी, धन्नू सलाम, मोहित मंडावी, दीपक सहारे, ओमप्रकाश उयके, कोमल देवहारी, नीलकंठ सोरी, खुशबू कोमरा, एस. एस. नरेटी, भारत भंडारी, बसंती कुंजाम, कृष्णा सोरी, रविन्द्र गौर, योगेश मरकाम, हरेश मड़काम, खिलेश्वर कौड़ो, मोनिका तेता सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।

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