भाटापारा/khabar-bhatapara.in:- भाटापारा श्री 1008 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में पर्यूषण पर्व महोत्सव धूमधाम से संपन्न हो रहा है. आज पर्युषण पर्व का चौथा दिन उत्तम शौच धर्म है। सर्वप्रथम 1008 भगवान पुष्पदंत नाथ जी की प्रतिमा मस्तक पर विराजमान कर पांडुक शीला में विराजमान की गई, पांडुक शिला में विराजमान होने के पश्चात आज का प्रथम अभिषेक करने का सौभाग्य अभिषेक मोदी, अविरल मोदी को प्राप्त हुआ। सभी भक्तों ने मिलकर भगवान का मंगल अभिषेक किया। उसके पश्चात शांति धारा संपन्न हुई ,आज की शांति धारा का सौभाग्य श्री अभिषेक नेहा आर्नव अनायशा मोदी ,श्री अविरल विनोद अंशु अरिंजय मोदी को प्राप्त हुआ । शांतिधारा के पश्चात भगवान की मंगल आरती की गई। मंगल आरती के पश्चात प्रतिमा का मार्जन कर सभी भक्त धूमधाम से भक्ति के साथ श्रीजी की प्रतिमा को लेकर भक्ति नृत्य करते हुए बेदी में विराजमान किया।
आज की मंगल पूजा प्रारंभ हुई सर्वप्रथम देव शास्त्र गुरु की पूजा, सोलहकारण पूजा ,रत्नत्रय पूजा, पंच मेरू पूजा,दशलक्षण पूजा ,24 तीर्थंकर का अर्ध, समुच्च महाअर्ध समर्पित कर पूजा संपन्न की गई ।
धर्म सभा को संबोधित करते हुए श्री अभिषेक मोदी ने बतलाया । धर्म का चौथा लक्षण है उत्तम शौच,स्वच्छता निर्मलता उज्जवलता यह अर्थ है ।इस शौच शब्द का ।वस्त्र मालिन था वह मालीनता निकल गई उज्जवलता स्वच्छता आ गई। उसके स्थान पर यही है शुचिता । शौच धर्म ही हमारा स्वभाव है। शौच धर्म का विरोधी लोभ है, लोभ समस्त पापों का जन्मदाता है ।धन का लोभ ,यश का लोभ ,परिग्रह संचय का लोभ,पद का लोभ ,आदि। जो समस्त प्रकार के लोभो से दूर रहता है वह पवित्र हृदय वाला व्यक्ति माना जाता है ।जहां पवित्रता होती है उसे शौच धर्म कहते हैं। उत्तम शौच गुण तो आत्मा का एक पवित्र गुण है ।इस गुण को प्रकट करने के लिए समस्त पर पदार्थ का लोभ छोड़ना होगा, तभी शौच धर्म प्रकट होगा। बंधन व मुक्ति दोनों का मूल कारण मन है ,जिनवाणी मन में तभी प्रवेश करेगी जब मन स्वच्छ होगा, लोभ रहित होगा, जिसका मन पवित्र हो गया उसका जीवन भी पवित्र हो जाएगा संतोष का नाम ही शौच धर्म है। अतः अपनी इच्छाओं को रोककर संतोष धारण करो। संसार का हर प्राणी सुख चाहता है, पर सच्चा निराकुल सुख किसे कहते हैं ,वह जानता नहीं है और मन की इच्छाओं को पूरा करके सुखी होने का प्रयास करता है। इच्छाएं जितनी जितनी पूरी करता है, उतनी उतनी और बढ़ती चली जाती हैं , लोभ की यह तासीर है लोभ के कारण ही संसार के सभी प्राणी दुखी हैं। पेट की भूख तो साधारण है दो-चार रोटी से भरा जा सकता है लेकिन मन को कितना भी मिले उतना थोड़ा है। सुमेरु पर्वत का ढेर लगा दो तब भी थोड़ा है। तब भी मन तृप्त नहीं होगा । मन की आकांक्षाएं अगणित होती हैं ,अनंत होती हैं। मनुष्य का मन बड़ा विचित्र है। आज तक किसी का भी मन तृप्त नहीं हुआ । लोभ के कारण ही संसार के सभी प्राणी दुखी हो रहे हैं ।सभी लोग धन संग्रह से ही धन्य हो रहे हैं ,”बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया” और बस उसी की कमाई में दिन-रात लगे हैं ,और धर्म को भूले हुए हैं ,हम लोभ के कारण अपने स्वर्णिम मानव जीवन को गंवा रहे हैं। जिस आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति है पतित से पावन बनने की क्षमता है ,वही आत्मा लोभ लिप्स के कारण संसार में रूल रहा है। संसार में सभी व्यक्ति दुखी हैं वे सदा सुख की तलाश करते हैं जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति सुखी तलाश करता है, एक छोटा सा बच्चा है यदि वह रो रहा है तो सुख के लिए रो रहा है। जिसके मन में आधिकारिक पाने की चाह होती है ,उसे व्यक्ति का जीवन कांटों से भरा होता है ।उसे कभी सुख नहीं मिल सकता। सुख पाने के लिए संतोष बहुत जरूरी है। एक कहावत है संतोषी सदा सुखी जो संतोषी है वह हमेशा सुखी है और जो असंतोषी है वह हमेशा दुखी है। जहां चाह है वहां ही दुख है ।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से प्रकाश मोदी ,नवीन गदीया, आलोक मोदी, अभिनव, अभिनंदन, अक्षत, सुमन लता ,रजनी, नेहा, सुरभि मोदी, अनुराग जैन, अंकुश जैन, संदीप सनत कुमार जैन ,पंकज गदीया ,नितिन गदीया ,नैतिक गदीया, शोभा लाल जी जैन , अरिंजय आदि,अंशु मोदी , लाला जैन, निशी हैं आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
छत्तीसगढ आज
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