भाटापारा/Khabar-Bhatapara.in:- भाटापारा श्री 1008 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में पर्यूषण पर्व महोत्सव धूमधाम से संपन्न हो रहा है. आज पर्युषण पर्व का छटवा दिन उत्तम संयम धर्म है। सर्वप्रथम 1008 भगवान महावीर स्वामी जी की प्रतिमा मस्तक पर विराजमान कर पांडुक शीला में विराजमान की गई, पांडुक शिला में विराजमान कर सभी भक्तों ने मिलकर भगवान का मंगल अभिषेक किया। उसके पश्चात शांति धारा संपन्न हुई ,आज की शांति धारा का सौभाग्य श्री शोभालाल संजय संदीप जैन को प्राप्त हुआ । दूसरी ओर से अक्षत रोशनी अनिल सुमन कटनी रिया मोदी को प्राप्त हुआ।शांतिधारा के पश्चात भगवान की मंगल आरती की गई। मंगल आरती के पश्चात प्रतिमा का मार्जन कर सभी भक्त धूमधाम से भक्ति के साथ श्रीजी की प्रतिमा को लेकर भक्ति नृत्य करते हुए बेदी में विराजमान किया।
आज की मंगल पूजा प्रारंभ हुई सर्वप्रथम देव शास्त्र गुरु की पूजा, सोलहकारण पूजा, भगवान शीतलनाथ जी की पूजा,,दशलक्षण पूजा ,24 तीर्थंकर का अर्ध, समुच्च महाअर्ध समर्पित कर पूजा संपन्न की गई ।
आज सुगंध दशमी का पावन दिवस है श्रीमती सुमन लता मोदी जी के द्वारा सुगंध दशमी व्रत की कथा सुनाई गई ,सभी लोगों ने मिलकर के आज धूप खेने का कार्यक्रम संपन्न किया। आज के दिन धूप खेने का विशेष महत्व होता है ,आज सभी देव मिलकर के आकृतिम चैत्त्यालय, नंदीश्वर दीप, पंच मेरु सभी जगह जाकर धूप दसवीं धूप खेने का कार्यक्रम संपन्न करते हैं।
धर्म सभा को संबोधित करते हुए श्री अभिषेक मोदी ने बतलाया धर्म का छटवा लक्षण है उत्तम संयम, संयम का सीधा सा अर्थ है दौड़ते हुए इंद्रिय विषयों की लगाम अपने हाथ में रखना तथा दया भाव से छय काय के जीवों की अपने द्वारा वीराधना न होने देना।
जैसे सड़क पर चलने वाले हर यात्री को सड़क के नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। इसी प्रकार मोक्ष के मार्ग पर चलने वाले साधक को नियम संयम का पालन करना अनिवार्य है ।तीर्थंकर भगवान भी घर में रहकर मुक्ति नहीं पा सकते। वह भी संयम धारण करने के उपरांत कर्मों की निर्जला करके सिद्ध तत्व को प्राप्त करते हैं।
संयम सद्गति प्राप्त करने का प्रमुख साधन है।
जिस क्षण संयम आता है उसी क्षण मानसिक शांति भी आ जाती है। हमें नियम संयम का पालन सम्यक प्रकार से करना चाहिए। संयम का अर्थ है शांति। मुनिराज तो पूर्ण संयम के धारी होते हैं लेकिन हमें भी अपने मानव इंद्रियों को अपने नियंत्रण में रखना चाहिए। मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए हमारे जीवन में भी नियम संयम का ब्रेक होना चाहिए ।संयम के बिना नर जन्म की सार्थकता नहीं है। संयम से रहित व्यक्ति किसी भी गति में जा सकता है ।संयम के अभाव में आत्मज्ञान होना संभव नहीं है। हम कौवा उड़ाने के लिए रत्न फेंक रहे हैं या राख के लिए रत्न को जला रहे हैं ।कर्म के वेग को सहने की क्षमता असंयमी के पास नहीं होती ।एक कहावत है एक बार खाए वह योगी, जो दो बार खाए वह भोगी, जो तीन बार खाए वह रोगी ,और जो बार-बार खाई उसकी क्या दशा होगी। यह असंयम का बार-बार खाने का ही परिणाम है। कि व्यक्ति इतने बीमार रहने लगे हैं की हर मोहल्ले में एक-एक डॉक्टर की आवश्यकता पड़ने लगी है ।पहले जब लोग संयम से रहते थे तब पूरे गांव में एक वैद्य होता था ,अब तो हर गली में दो-चार डॉक्टर मिल जाएंगे। संयमी व्यक्ति ही मन पर विजय प्राप्त कर सकता है। मन को विषय भोगों से हटाकर संयम का पालन करो ,सत्संगति स्वाध्याय और वैराग्य में अपने मन को लगाओ। संयमी व्यक्ति शरीर और आत्मा के भेद को जानता है ।पर असंयमी का मन कभी शांत नहीं रहता। महात्मा गांधी जी ने गांधी विचार दोहन नामक पुस्तक में लिखा है बहुत अधिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं है संयम के साथ अल्प ज्ञान भी मूल्यवान है।
रात्रि में मंदिर के में भगवान की मंगल आरती ,आचार्य विद्यासागर जी महाराज ,परम पूज्य चिन्मय सागर जी महाराज की मंगल आरती संपन्न हुई । मां जिनवाणी का वाचन श्रीमती सुमन लता मोदी जी के द्वारा किया गया।
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