■ 122 वर्ष प्राचीन परंपरा का हो रहा निर्वहन
■ पूरी धाम की चंदन काठ से बनी मूर्तिया है मंदिर में स्थापित
■ मंदिर का प्रसाद श्रद्धालुओं के लिए कभी कम नही पड़ता
भाटापारा :- khabar-bhatapara.in :- भाटापारा को धर्म आयोजनों के चलते धर्मनगरी के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां लगभग जितने भी धर्म आयोजन हैं जिसमें भाटापारा की रामलीला का आयोजन 106 वर्ष प्राचीन हो चुकी है, अखंड रामनाम सप्ताह का आयोजन लगभग 90 वर्ष से चला आ रहा है उसी कड़ी में इससे भी प्राचीनतम एक आयोजन जो है वह है भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा लगभग पिछले 122 वर्षों से अनवरत निकली जा रही है भाटापारा के राम सप्ताह चौक के पास में स्थित जगन्नाथ मंदिर जहां भगवान जगन्नाथ के साथ बलभद्र महाराज और सुभद्रा देवी की मूर्ति स्थापित मंदिर है, जिस मंदिर को लटूरिया मंदिर के नाम से भी जाना जाता है जहां प्रतिवर्ष के आषाढ़ मास के द्वितीया के दिन रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है इसमें भाटापारा के निवासियों के साथ आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के सैकड़ो लोग भी रथ यात्रा में शामिल होते हैं और बड़ी ही धूमधाम से रथ यात्रा लटूरिया मंदिर से निकलकर भाटापारा के बहुत सारे प्रमुख चौक चौराहो से होते हुए 10 से 15 किलोमीटर की यात्रा करते हुए वापस लटूरिया मंदिर में भगवान की स्थापना होती है। कहा जाता है इस दिन रथ यात्रा के माध्यम से भगवान जगन्नाथ सभी भक्तों के घर में पहुंचकर दर्शन देते हैं। जिसका आयोजन इस वर्ष 27 जून 2025 दिन शुक्रवार को होगा जहां दोपहर 12:00 बजे भगवान की महाआरती और गजामूंग व महाप्रसाद का भोग लगाने के पश्चात दोपहर 1:00 से रथ यात्रा निकाली जाएगी ।
इस मंदिर की अद्भुत प्रचलित है कहानियां
भाटापारा के लटूरिया मंदिर जो की जगन्नाथ भगवान का एक मात्र मंदिर है । वहां के वर्तमान पुजारी जगदीश वैष्णव हैं जो की चौथी पीढ़ी के हैं। बताया जाता है की प्राचीनतम समय 122 वर्ष से भी पहले लटूरिया महाराज के द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी इस मंदिर में जो भगवान जगन्नाथ जी बलभद्र जी एवं सुभद्रा देवी की जो मूर्ति है वह चंदन काठ की लकड़ी से निर्माणित मूर्ति है, जिसे लटूरिया दास जी महाराज ने भाटापारा से लगभग 610 किलोमीटर की दूरी पर स्थित उड़ीसा राज्य के “पूरी” जहां भगवान जगन्नाथ का मंदिर है जो चारों धाम में से एक धाम है, वहां से लाया गया है लटूरिया दास जी महाराज जी के द्वारा भाटापारा से पैदल उड़ीसा राज्य के “पूरी” पहुंचे और वहां से अपने मित्र मंडली के साथ भगवान जगन्नाथजी, सुभद्रा देवी एवं बलभद्र जी महाराज की मूर्ति को लेकर वापस पैदल भाटापारा आए और इस मंदिर की स्थापना की । लटूरिया महाराज जी के बाद इस मंदिर का कार्यभार भगवान दास जी महाराज के हाथों में सौंपा गया । प्राचीनतम समय में बहुत वर्षों तक जो रथ यात्रा निकाली जाती थी वह लकड़ी की रथ थी जिसमें रथ यात्रा का आयोजन किया जाता था, वर्तमान में लोहे से बनी रथ में इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। कहते हैं “जगन्नाथ के भात को, जगत पसारे हाथ को” जिस तरह से “पुरी” के जगन्नाथ मंदिर में प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता वैसे ही भाटापारा के लटूरिया महाराज के जगन्नाथ मंदिर का भंडारा रसोई भोजन कभी श्रद्धालुओं के लिए कम नहीं पड़ता। भगवान दास जी महाराज के बाद उनके नाती पोते के रूप में धन्ना महाराज इस मंदिर के पुजारी रहे और वर्तमान में धन्ना महाराज के पुत्र जगदीश वैष्णव के द्वारा इस मंदिर में पुजारी की भूमिका निभाई जा रही है । भाटापारा का मंदिर बहुत ही शुभ एवं सिद्ध माना जाता है जहां पर भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर लोग अपनी मनोकामना मांगते हैं जो की पूरी होती है। भाटापारा में लटूरिया मंदिर एकमात्र जगन्नाथ जी का प्रसिद्ध मंदिर है जहां भाटापारा वह आसपास के श्रद्धालु भगवान का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।
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