भाटापारा/khabar-bhatapara.in :- भगत सिंह उल्का पिंड की तरह भारतीय क्षितिज पर अवतरित हुए थे l अपनी शहादत से पहले वे हर देशवासी के मन में चेतना और आकंछाओ के प्रतीक बन चुके थे । उन्होंने लोगो को ये बताया की शोषण और जुल्म करने वालो में देशी और विदेशी का अंतर बेमानी होता है ।भगत सिंह ने देश से प्रेम किया समाज को बदलना चाहा घर परिवार को समाज का अंग जानकर समाज को आजाद और बेहतर बनाना चाहा । ये युवा मन का आत्मस्वाभिमान ही तो था , इस देश की आजादी के लिए अंग्रेजो के मन में भय पैदा किया तो इसी महानायक की शेर दिली थी जिसने 8 अप्रेल 1929 को सेन्ट्रल असेम्बली में धमाका कर अंग्रेजो सहित अंग्रेजो की खिलाफत करने वाले हर देश को ये सन्देश दिया था की अंग्रेजो के हौसले भी पस्त किये जा सकते है, बशर्ते धमाका करने के लिए एकता और साहस हो । उस घटना का जिक्र भी जरूरी है जिसके चलते वे और भी मजबूत होकर अंग्रेजो के खिलाफ खड़े होने का साहस करते गए. अस्सेम्बली मे बम धमाके के बाद भगत सिंह चाहते तो वहा से भाग सकते थे पर उन्होंने सबके सामने इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय का उदघोष करते हुए अपनी गिरफ्तारी दी।जेल मे रहने के दौरान भगत सिंह के सब्र और साहस के साथ साथ आत्म आंकलन का भी कड़ा परिक्षण हुआ अंग्रेजो ने इस दौरान भगत सिंह और उनके साथियो को तरह तरह के प्रलोभन भी दिए और जब वे नहीं माने तब मानवता की सारी सीमायें लांघते हुए उन्हें बहुत बुरी तरह से प्रताड़ित किया लेकिन वह भगत सिंह थे जिनका शरीर और आत्मा दोनों फौलाद के बने थे जो अंग्रेजो के कठोर से कठोर यातनाओं के सामने नहीं टूटे इस दौरान भगत सिंह ने जेल मे कैदियों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार को भी देखा जानवरों से भी बदतर दिए जाने वाले भोजन के विरोध मे उन्होंने अपने साथियो के साथ अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल कर दी जो लगातार 117 दिन चली और आखिर क़र इस भूख हड़ताल के सामने ब्रिटिश शासन को झुकना पड़ा और इस आजादी के मतवाले की जीत हुई । भगत सिंह की बढ़ती लोकप्रियता से अंग्रेजी हुकूमत घबराने लगी और उन्हें जब लगने लगा भगत सिंह झुकने वालो मे से नहीं है और ज्यादा दिन तक उन्हें जेल मे रखना अंग्रेजी हुकूमत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है तो उन्होंने एकतरफा निर्णय करते भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को 24 मार्च 1931 को फांसी दिए जाने की सजा सुना दी ।
अंग्रेजी हुकूमत संकित थी की कही फांसी वाले दिन देश मे किसी तरह अप्रिय स्थिति न हो जिससे अंग्रेजी हुकूमत डर गयी और उन्होंने 23 मार्च की रात्रि को ही गुपचुप तरीके से भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी।
भगत सिंह की शहादत वर्तमान परिवेश मे प्रासंगिक है वे देश के करोड़ो युवाओ के प्रेरणा स्रोत है लेकिन आजादी के बाद से लेकर लगभग 50 – 55 वर्ष तक शहीदे आजम भगत सिंह को स्कुल की किताबो में आतंकवादी पढ़ाया जाता रहा अंग्रेजो की टोपी जिसे भगत सिंह जी ने महज अंग्रेजो से छुपने के लिए कुछ समय ही धारण किया था और असेम्बली में बम फेंकने के बाद जब गिरफ्तारी दी जेल में रहते वापस सिक्खी स्वरूप में आ गए थे लेकिन अफ़सोस तत्कालीन सरकारों ने भगत सिंह जी की आकृति जो अंग्रेजो से छुपने के लिए धारण की थी जबकी वह समय की मजबूरी थी उसे आजाद भारत में किताबो चित्रों में दिखाया ।
आजादी के दीवाने ऐसे वीर सपूत भगत सिंह, सुखदेव ,राजगुरु की शहादत को शत शत नमन है
अमरजीत सिंह सलूजा प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष छत्तीसगढ़ सिख संगठन ,भगत सिंह उल्का पिंड की तह भारतीय क्षितिज पर अवतरित हुए थे l अपनी शहादत से पहले वे हर देशवासी के मन में चेतना और आकंछाओ के प्रतीक बन चुके थे l भगत सिंह ने देश से प्रेम किया समाज को बदलना चहा घर परिवार को समाज का अंग जानकर समाज को आजाद और बेहतर बनाना चाहा l ये युवा मन का आत्मस्वाभिमान ही तो था , इस देश की आजादी के लिए अंग्रेजो के मन में भय पैदा किया तो इसी महानायक की शेर दिली थी जिसने 8 अप्रेल 1929 को सेन्ट्रल असेम्बली में धमाका कर अंग्रेजो सहित अंग्रेजो की खिलाफत करने वाले हर देश को ये सन्देश दिया था की अंग्रेजो के हौसले भी पस्त किये जा सकते है, बशर्ते धमाका करने के लिए एकता और साहस हो । उस घटना का जिक्र भी जरूरी है जिसके चलते वे और भी मजबूत होकर अंग्रेजो के खिलाफ खड़े होने का साहस करते गए. अस्सेम्बली मे बम धमाके के बाद भगत सिंह चाहते तो वहा से भाग सकते थे पर उन्होंने सबके सामने इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय का उदघोष करते हुए अपनी गिरफ्तारी दी. जेल मे रहने के दौरान भगत सिंह के सब्र और साहस के साथ साथ आत्म आंकलन का भी कड़ा परिक्षण हुआ अंग्रेजो ने इस दौरान भगत सिंह और उनके साथियो को तरह तरह के प्रलोभन भी दिए और जब वे नहीं माने तब मानवता की सारी सीमायें लांघते हुए उन्हें बहुत बुरी तरह से प्रताड़ित किया लेकिन वह भगत सिंह थे जिनका शारीर और आत्मा दोनों फौलाद के बने थे जो अंग्रेजो के कठोर से कठोर यातनाओं के सामने नहीं टूटे इस दौरान भगत सिंह ने जेल मे कैदियों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार को भी देखा जानवरों से भी बदतर दिए जाने वाले भोजन के विरोध मे उन्होंने अपने साथियो के साथ अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल कर दी जो लगातार 117 दिन चली और आखिर क़र इस भूख हड़ताल के सामने ब्रिटिश शासन को झुकना पड़ा और इस आजादी के मतवाले की जीत हुई । भगत सिंह की बढ़ती लोकप्रियता से अंग्रेजी हुकूमत घबराने लगी और उन्हें जब लगने लगा भगत सिंह झुकने वालो मे से नहीं है और ज्यादा दिन तक उन्हें जेल मे रखना अंग्रेजी हुकूमत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है तो उन्होंने एकतरफा निर्णय करते भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को 24 मार्च 1931 को फांसी दिए जाने की सजा सुना दी ।
अंग्रेजी हुकूमत संकित थी की कही फांसी वाले दिन देश मे किसी तरह अप्रिय स्थिति न हो जिससे अंग्रेजी हुकूमत डर गयी और उन्होंने 23 मार्च की रात्रि को ही गुपचुप तरीके से भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी।
भगत सिंह की शहादत वर्तमान परिवेश मे प्रासंगिक है वे देश के करोड़ो युवाओ के प्रेरणा स्रोत है लेकिन आजादी के बाद से लेकर लगभग 50 – 55 वर्ष तक शहीदे आजम भगत सिंह को स्कुल की किताबो में आतंकवादी पढ़ाया जाता रहा अंग्रेजो की टोपी जिसे भगत सिंह जी ने महज अंग्रेजो से छुपने के लिए कुछ समय ही धारण किया था और असेम्बली में बम फेंकने के बाद जब गिरफ्तारी दी जेल में रहते वापस सिक्खी स्वरूप में आ गए थे लेकिन अफ़सोस तत्कालीन सरकारों ने भगत सिंह जी की आकृति जो अंग्रेजो से छुपने के लिए धारण की थी जबकी वह समय की मजबूरी थी उसे आजाद भारत में किताबो चित्रों में दिखाया ।
आजादी के दीवाने ऐसे वीर सपूत भगत सिंह सुखदेव राजगुरु की शहादत को शत शत नमन है
अमरजीत सिंह सलूजा प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष छत्तीसगढ़ सिख संगठन ने बताया कि आज भाटापारा में ज्ञानी निरंजन सिंह के द्वारा भगत सिंह के माल्यार्पण कर अरदास की हुई और प्रसाद वितरित किया गया एवं की शहादत को याद किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से राजा गुम्बर, मंजीत सिंह, तंजीव अरोरा ,ज्ञानी निरंजन सिंह, बबलू चावला, रोबिन चावला, बयांत सिंह, गुरमीत गुंबर, बिल्लू छाबड़ा, परमजीत सिंह छाबड़ा, राजा चावला, बलविंदर छाबड़ा, सागर, अमरजीत सिंह सलूजा, कप्पील भाई उपस्थित थे ।
छत्तीसगढ आज
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