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पांचवे दिन देवी भागवत में मधुकैटभ वध, एवं हयग्रीव वध की कथा हुई ।
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मधुकैटभ को राग-द्वेश और हयग्रीव को मन की गति व मन की अच्छाई बुराई के रूप में किया व्याख्यान
भाटापारा/khabar-bhatapara.in:- भाटापारा में नागरिक ज्ञान यज्ञ समिति के द्वारा आयोजित कल्याण क्लब मैदान में श्री देवी भागवत का आयोजन का पांचवा दिवस संपन्न हुआ । जिसमें संत बालयोगी विष्णु अरोड़ा नें पांचवे दिवस की कथा में मधुकैटभ के वध की कथा सुनाई जिसमें भगवान विष्णु के कान से जन्म लेने वाले मधु कैटभ नाम के राक्षसों के द्वारा भगवती की उपासना और तप कर अपनी इच्छा और अपने मनपसंद स्थान पर मरने का वरदान मांगते है जिसके उत्पात से घबराये देवताओ और ब्रम्हा जी के द्वारा भगवान नारायण से उसके वध के लिए निवेदन है जिसके बाद भगवान नारायण और मधुकैटभ राक्षसो के बीच हजारो वर्षो तक युद्ध होता है लेकिन मधुकैटभ के न मरने के कारण भगवान नारायण देवी भगवती की उपासना करते है जिसके बाद चतुराई का सहारा लेने के लिए देवी भगवती कहती है जिसके बाद अपने चतुराई की सहायता से भगवती के शक्ति से उन राक्षसो का वध भगवान नारायण करते है वही भगवती के द्वारा भगवान शंकर , विष्णु एवं ब्रम्हा जी को स्त्रीयॉ प्राप्त हुई जिनकी महागौरी, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती की कथा पंडाल में उपस्थित स्राताओ को विस्तार से सुनाया। पंजाब के जाने वाले संत रामतीर्थ के जीवनी की सच्ची घटना का वर्णन भी संत विष्णु जी ने अपने कथा वाचन में किया। वही हयग्रीव राक्षस के द्वारा वेदो को ब्रम्हा जी से चुराने और भगवान नारायण के शीश कटने व घोड़े के शीश को भगवान नारायण के धारण करने की कथा सुनाई क्यों कि हयग्रीव राक्षस ने तपस्या कर वरदान पाया था कि मेरे ही स्वरूप का ही मुझे मार सकेगा। वही कथाओं के अंत में संत बालयोगी विष्णु अरोड़ा जी ने अध्यात्म चिंतन में कथाओ के सार को बताते हुए मधु कैटभ को मिठा-कडुआ या राग-द्वेश के रूप में व्याख्यायित किया एवं हयग्रीव की कथा का भी अध्यात्म स्वरूप में सार बताया ।
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